संस्कृत श्लोक अर्थ सहित – Sanskrit Slokas With Meaning in Hindi Language
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विद्या पर श्लोक – Sanskrit Slokas With Meaning in Hindi on Vidya
- Shloka: द्यूतं पुस्तकवाद्ये च नाटकेषु च सक्तिता ।
स्त्रियस्तन्द्रा च निन्द्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥
भावार्थ: जुआ, वाद्य, नाट्य (फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष), तंद्रा, और निंद्रा – ये छः विद्या पाने में विघ्न होते हैं. - Shloka: विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया ।
यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥
भावार्थ: विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छः जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है. - Shloka: गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः ।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥
भावार्थ: गाकर पढ़ना, जल्दी-जल्दी पढ़ना, पढ़ते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ़ जाना, अर्थ जाने बिना पढ़ना, और धीमा आवाज होना ये छः पाठक के दोष हैं. - Shloka: नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
भावार्थ: विद्या जैसा बंधु नहीं है, विद्या जैसा कोई मित्र नहीं है, (और) विद्या के जैसा कोई धन नहीं है और विद्या के जैसा कोई सुख नहीं है. - Shloka on Saraswati & Vidya:
अपूर्वः कोऽपि कोशोड्यं विद्यते तव भारति ।
व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥
भावार्थ: हे सरस्वती ! तेरा खज़ाना सचमुच अद्भुत है; जो खर्च करने से बढ़ता है, और जमा करने से कम होता है. - Shloka: न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
भावार्थ: विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों के बीच उसका बंटवारा नहीं होता, न उसका कोई वजन होता है और यह विद्यारुपी धन खर्च करने से बढ़ता है. सचमुच, विद्यारुपी धन सर्वश्रेष्ठ है.
- Shloka: विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
भावार्थ: विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, विद्या गुप्त धन है. वह भोग देनेवाली, यशदेने वाली, और सुखकारी है. विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में विद्या बंधु है. विद्या बड़ी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं. विद्याविहीन व्यक्ति पशु हीं है.
- Shloka: मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते
कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम् ।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम्
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
भावार्थ: विद्या माता की तरह रक्षा करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रिझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है. सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या-क्या नहीं करती है. - Shloka: विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥
अर्थ- विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इसलिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन. - Shloka: क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
भावार्थ: एक-एक क्षण गँवाए बिना विद्या पानी चाहिए; और एक-एक कण बचाकर धन इकट्ठा करना चाहिए. क्षण गँवाने वाले को विद्या प्राप्त नहीं होती, और कण नष्ट करने वाले को धन नहीं मिलता.
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10 आसान संस्कृत श्लोक – Best Small Easy Short Shlok in Sanskrit Subhashitani With Meaning in Hindi
- Shloka on Dan – Donation:
शतहस्त समाहर सहस्रहस्त संकिर ।
भावार्थ: सौ हाथ से कमाओ और हजार से दान करो. - Shloka on Yoga: योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।
भावार्थ: चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है. - Shloka on Human Nature: चिरनिरूपणीयो हि व्यक्तिस्वभावः ॥
भावार्थ: व्यक्ति का स्वभाव बहुत समय के बाद पहचाना जाता है. - Shloka on Scholar : विद्वान सर्वत्र पूज्यते ॥
भावार्थः विद्वान सब जगह सम्मान पाता है. - श्लोक on Hard Work and Money:
उद्योगसम्पन्नं समुपैति लक्ष्मीः ॥
भावार्थ: परिश्रमी व्यक्ति के पास हीं लक्ष्मी आती है. - श्लोक: किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
भावार्थ: कल्पलता की तरह विद्या कौन सा काम नहीं सिद्ध कर देती ?
- श्लोक: सा विद्या या विमुक्तये ॥
भावार्थ: मनुष्य को मुक्ति दिलाये वही विद्या है ।
- श्लोक on Nature: स्वभावो दुरतिक्रमः ॥
भावार्थ: स्वभाव को बदलना सम्भव नहीं होता. - श्लोक on disunity: असंहताः विंनश्यन्ति ॥
भावार्थ: जो लोग बिखर कर रहते है वे नष्ट हो जाते हैं.
- श्लोक on Lakshmi: अपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥
भावार्थ: बिना विचारे कार्य करने वाले को लक्ष्मी त्याग देती हैं ।
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वृक्ष पर श्लोक – Sanskrit slokas on trees with meaning in Hindi
- श्लोक on Tree: अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम् ।
धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन: ॥
भावार्थ: “सब प्राणियों पर उपकार करने वाले वृक्षों का जन्म श्रेष्ठ है. ये वृक्ष धन्य हैं कि जिनके पास से याचक कभी निराश नहीँ लौटते. - Shloka on Vriksha:
पुष्प-पत्र-फलच्छाया. मूलवल्कलदारुभिः।
धन्या महीरुहा येषां. विमुखा यान्ति नार्थिनः ॥
भावार्थ: वे वृक्ष धन्य हैं जिनके पास से याचक फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़,. छाल और लकड़ी से लाभान्वित होते हुए कभी भी निराश नहीं लौटते.
- श्लोक on Paropkar & Tree:
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
भावार्थ: परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है.
- श्लोक: छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे ।
फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुषा ईव ॥
भावार्थ: दूसरे को छाँव देता है, खुद धूप में खडा रहता है, फल भी दूसरों के लिए होते हैं; सचमुच वृक्ष सत्पुरुष जैसे होते हैं.
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माता-पिता श्लोक – Sanskrit Slokas on Parents with Meaning in Hindi
- श्लोक: सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा:॥
भावार्थ: सत्य मेरी माता है, ज्ञान मेरा पिता है, धर्म मेरा भाई है, दया मेरी मित्र है, शांति मेरी पत्नी है, क्षमा मेरा पुत्र है। यह छः मेरे सम्बन्धी हैं॥
- श्लोक: मातापित्रो र्गुरौ मित्रे विनीते चोपकारिणि ।
दीनानाथ विशिष्टेषु दत्तं तत्सफलं भवेत् ॥
भावार्थ: माता-पिता को, गुरु को, मित्र को, संस्कारी लोगों को, उपकार करनेवाले को और खासकर दीन-अनाथ को (या ईश्वर को) जो दिया जाता है, वह सफल होता है ।
- श्लोक: धर्मो मातेव पुष्णानि धर्मः पाति पितेव च ।
धर्मः सखेव प्रीणाति धर्मः स्निह्यति बन्धुवत् ॥
भावार्थ: धर्म माता की तरह हमें पुष्ट करता है, पिता की तरह हमारा रक्षण करता है, मित्र की तरह खुशी देता है, और संबंधीयों की भाँति स्नेह देता है ।
- श्लोक: प्रीणाति यः सुचरितैः पितरौ स पुत्रः ।
भावार्थ: जो अच्छे कृत्यों से मातापिता को खुश करता है वही पुत्र है ।
- श्लोक: ऋणकर्ता पिता शत्रुः माता च व्यभिचारिणी ।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ॥
भावार्थ: कर्जा करनेवाला पिता, व्यभिचारिणी माता, रुपवती स्त्री, और अनपढ पुत्र – शत्रुवत् हैं ।
- श्लोक: सुपुत्रो यः पितुर्मातुः भूरिभक्तिसुधारसैः ।
निर्वापयति सन्तापं शेषास्तु कृमिकीटकाः ॥
भावार्थ: अत्यंत भक्तिरुपी सुधारस से जो माता-पिता का संताप दूर करता है वही सुपुत्र; बाकी के तो कृमि और कीटक (समान) हैं ।
- श्लोक: मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते
कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम् ।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम्किं
किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
भावार्थ: विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है । सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहि करती ?
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गुरु श्लोक – Sanskrit Slokas with Meaning in Hindi on guru
- Guru Brahma Guru Vishnu Sloka With Hindi meaning
श्लोक: गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हीं शिव है; गुरु हीं साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम है. - धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
अर्थ : धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं.
- प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा । शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
अर्थ : प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान हैं.
- गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते । अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥
अर्थ : ‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है.
- श्लोक: विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् । शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
भावार्थ: विद्वत्व, दक्षता, शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व, और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक के गुण हैं.
- श्लोक: बहवो गुरवो लोके शिष्य वित्तपहारकाः । क्वचितु तत्र दृश्यन्ते शिष्यचित्तापहारकाः ॥
भावार्थ: जगत में अनेक गुरु शिष्य का वित्त हरण करनेवाले होते हैं; परंतु, शिष्य का चित्त हरण करनेवाले गुरु शायद हीं दिखाई देते हैं.
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नीति पर श्लोक – Niti Shlok
- श्लोक: पापं वर्धयते चिनोति कुमतिं कीर्त्यंगना नश्यति
धर्मं ध्वंसयते तनोति विपदं सम्पत्तिमुन्मर्दति ।
नीतिं हन्ति विनीतिमत्र कुरुते कोपं धुनीते शमम्किं
वा दुर्जन संगतिं न कुरुते लोकद्वयध्वंसिनी ॥
भावार्थ: पाप को बढाती है, कुमति का संचार करती है, कीर्तिरुप अंगना का नाश करती है, धर्म का ध्वंस करती है, विपत्ति का विस्तार करती है, संपत्ति का मर्दन करती है, नीति को हरती है, विनीति को कोप कराती है, शांति को हिलाती है; दोनों लोक का नाश करनेवाली दुर्जन-संगति क्या नहीं करती ?
- श्लोक: धूर्तः स्त्री वा शिशु र्यस्य मन्त्रिणः स्यु र्महीपतेः ।
अनीति पवनक्षिप्तः कार्याब्धौ स निमज्जति ॥
अर्थात: जिस राजाके सचिव की स्त्री या पुत्र धूर्त हो, उसकी कार्यरुप नौका अनीतिके पवन से डूब जाती है एसा समज ।
- श्लोक: उत्तमं प्रणिपातेन शूरं भेदेन योजयेत् ।
नीचमल्पप्रदानेनेष्टं धर्मेण योजयेत् ॥
अर्थात: अपने से श्रेष्ठ हो उसको प्रणाम करके, शूर को भेदनीति से, कम दरज्जेवाले को कुछ देकर, और जिसकी जरुरत हो उसे न्याय पूर्वक अपना करना चाहिए ।
- श्लोक: यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता ।
नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम् ॥
अर्थात: जहाँ उत्साह से कार्य का आरंभ होता है, जहाँ आलस्य नहि और जहाँ नीति और पराक्रम का संयोग है, वहाँ लक्ष्मी जरुर स्थिर रहती है ।
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देशभक्ति पर श्लोक – Sanskrit Slokas on Patriotism
- श्लोक: को देशः कानि मित्राणि-कःकालःकौ व्ययागमौ ।
कश्चाहं का च मे शक्ति-रितिचिन्त्यं मुहुर्मुहु ॥
भावार्थ: (मेरा) देश कौन-सा, (मेरे) मित्र कौन, काल कौन-सा, आवक-खर्च कितना, मैं कौन, मेरी शक्ति कितनी, ये समजदार इन्सान ने हर घडी (बार बार) सोचना चाहिए । - श्लोक: यस्मिन् देशे न सन्मानो न प्रीति र्न च बान्धवाः ।
न च विद्यागमः कश्चित् न तत्र दिवसं वसेत् ॥
अर्थात: जिस देश में सन्मान नहीं, प्रीति नहीं, संबंधी नहीं, और जहाँ विद्या मिलना संभव न हो, वहाँ एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए ।
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कर्म पर श्लोक – Sanskrit Shlok on Karma
- श्लोक: ब्रुवते हि फ़लेन साधवो न तु कण्ठेन निजोपयोगिताम् ।
अर्थात: अच्छे लोग अपनी उपयुक्तता, किये हुए कर्म से बताते हैं, नहीं कि बोलकर ।
- श्लोक: उत्साहवन्तः पुरुषाः नावसीदन्ति कर्मसु ।
अर्थात: उत्साही लोग काम करने में पीछे नहीं हटते ।
- श्लोक: सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः कीर्तिस्त्यागानुसारिणी ।
अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी ॥
अर्थात: लक्ष्मी सत्य को अनुसरती है (अनुसरने वाली होनी चाहिए), कीर्ति त्याग को, विद्या अभ्यास को, और बुद्धि कर्म को अनुसरती है ।
- श्लोक: अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा ।
अनुग्रहश्च दानं च एष धर्मः सनातनः ॥
अर्थात: मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों का अद्रोह रखना, अनुग्रह और दान करना – यही सनातन धर्म है ।
- श्लोक: नास्तिकः पिशुनश्चैव कृतघ्नो दीर्घदोषकः ।
चत्वारः कर्मचाण्डाला जन्मतश्चापि पञ्चमः ॥
अर्थात: नास्तिक, निर्दय, कृतघ्नी, दीर्घद्वेषी, और अधर्मजन्य संतति – ये पाँचों कर्मचांडाल हैं.
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स्वास्थ्य पर श्लोक – Sanskrit Shlokas on Health
- श्लोक: व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥
भावार्थ : व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं॥ - श्लोक: व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् । विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥
भावार्थ : व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं पहुंचाता । - श्लोक: शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता । दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
भावार्थ : व्यायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर की कान्ति वा सुन्दरता बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं । पाचनशक्ति बढ़ती है । आलस्य दूर भागता है । शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है । तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है। - श्लोक: न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति । स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
भावार्थ : व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़ मांस सब स्थिर होते हैं । - श्लोक: त्रयः उपस्तम्भाः । आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति ।”
भावार्थ: शरीररुपी मकान को धारण करनेवाले तीन स्तंभ हैं: आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य - श्लोक: भुक्त्वोपविशत:स्थौल्यं शयानस्य रू जस्थता।
आयुश्चक्र माणस्य मृत्युर्धावितधावत:॥
अर्थात्: भोजन करने के पश्चात एक ही जगह बैठे रहने से स्थूलत्व आता है। जो व्यक्ति भोजन के बाद चलता है उसक आयु में वृद्धि होती है और जो भागता या दौड़ लगाता है उसकी मृत्यु समीप आती है. - श्लोक: पित्तः पंगुः कफः पंगुः पंगवो मलधातवः।
वायुना यत्र नीयन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत्॥
पवनस्तेषु बलवान् विभागकरणान्मतः।
रजोगुणमयः सूक्ष्मः शीतो रूक्षो लघुश्चलः॥ (शांर्गधरसंहिताः 5.25-26)
अर्थात: पित्त, कफ, देह की अन्य धातुएँ तथा मल-ये सब पंगु हैं, अर्थात् ये सभी शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते। इन्हें वायु ही जहाँ-तहाँ ले जाता है, जैसे आकाश में वायु बादलों को इधर-उधर ले जाता है। अतएव इन तीनों दोषों-वात, पित्त एवं कफ में वात (वायु) ही बलवान् है; क्योंकि वह सब धातु, मल आदि का विभाग करनेवाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म, अर्थात् समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करनेवाला, शीतवीर्य, रूखा, हल्का और चंचल है। -
पृथ्वी पर श्लोक – Sanskrit Slokas on Earth
- श्लोक: गोभिर्विप्रैः च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः
अलुब्धै र्दानशीलैश्च सप्तभि र्धार्यते मही ॥
अर्थात: गाय, ब्राह्मण, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी इन्सान, निर्लोभी, और दानी – इन सात की वजह से पृथ्वी टिकी हुई है.
- श्लोक: दुर्जस्नं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले ।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत् ॥
अर्थात: यह पृथ्वी पर दुर्जन को सज्जन बनाने का कोई उपाय नहीं है । अपान को सौ बार धोने परभी उसे श्रेष्ठ इंन्द्रिय नहीं बनायी जा सकती ।
- श्लोक: लक्ष्मीवन्तो न जानन्ति प्रायेण परवेदनाम् ।
शेषे धराभारक्लान्ते शेते नारायणः सुखम् ॥
अर्थात: लक्ष्मीवान मनुष्य दूसरों की वेदना नहीं समज सकते । देखो ! समस्त पृथ्वी का भार उठाये शेष नाग पर (लक्ष्मीपति) विष्णु कैसे सुख से सोये हुए हैं.
- श्लोक: वीरभोग्या वसुन्धरा ।
अर्थात: पृथ्वी का उपभोग वीर पुरुष हि कर सकते है ।
- श्लोक: त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥
अर्थात: कुल के हितार्थ एक का त्याग करना, गाँव के हितार्थ कुल का, देश के हितार्थ गाँव का और आत्म कल्याण के लिए पृथ्वी का त्याग करना चाहिए ।
- श्लोक: तुरगशतसहस्रं गोगजानां च लक्षं
कनकरजत पात्रं मेदिनी सागरान्ता ।
सुरयुवति समानं कोटिकन्याप्रदानं
न हि भवति समानं चान्नदानात्प्रधानम् ॥
अर्थात: सहस्र घोडे, लाखों गाय और हाथी, सोने-चांदी के पात्र, आसागर पर्यंत पृथ्वी, अप्सरा जैसी करोडों कन्याओं का दान, ये कुछ भी अन्नदान जैसा श्रेष्ठ नहीं ।
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माँ पर श्लोक – Sanskrit Slokas on Mother
- श्लोक: गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ।
अर्थात: सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है ।
- श्लोक: यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम् ।
न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि ॥
अर्थात: मनुष्य के जन्म के बाद, माता-पिता उसके लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसका बदला सौ साल बाद चुकाना भी शक्य नहीं.
- श्लोक: माता यदि विषं दधात् विक्रीणाति पिता सुतम् ।
राजा हरति सर्वस्यं तत्र का परिवेदना ॥
अर्थात: यदि माँ (स्वयं) ज़हर दे, पिता बालक को बेचे, और राजा (खुद) सर्वस्व हरण कर ले, तो दुःख किसे कहना ?
- श्लोक: माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
अर्थात: जो अपने बालक को पढाते नहि, ऐसी माता शत्रु समान और पित वैरी है; क्यों कि हंसो के बीच बगुले की भाँति, ऐसा मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहि देता.
- श्लोक: राजपत्नी गुरोः पत्नी भ्रातृपत्नी तथैव च ।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैते मातरः स्मृतः ॥
अर्थात: राजपत्नी, गुरुपत्नी, भाभी, सास, और जन्मदात्री माँ ये पाँच माताएँ हैं ।
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योग पर श्लोक – Yoga Slokas in Sanskrit
- श्लोक: कर्मसु कौशलं योग:
अर्थात: कर्मों में कुशलता ही योग है - श्लोक: “योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते”।। (गीता २/४८)
अर्थात: हे धनञ्जय! तुम योग में स्थित होकर शास्त्रोक्त कर्म करते जाओ। केवल कर्म में आसक्ति का त्याग कर दो और कर्म सिद्ध हो या असिद्ध अर्थात् उसका फल मिले या फिर न मिले, इन दोनों ही अवस्थाओं में अपनी चित्तवृत्ति को समान रखो.
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संस्कृत सूक्ति – Sanskrit Sukti With Meaning in Hindi
- कायः कस्य न वल्लभः ।
अपना शरीर किसको प्रिय नहीं है ? - शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।
शरीर धर्म पालन का पहला साधन है । - त्रयः उपस्तम्भाः ।
आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति ।
शरीररुपी मकान को धारण करनेवाले तीन स्तंभ हैं; आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य (गृहस्थाश्रम में सम्यक् कामभोग) । - सर्वार्थसम्भवो देहः ।
देह् सभी अर्थ की प्राप्र्ति का साधन है ।
- Vridhon Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् ।
वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है । - वृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ।
जो धर्म की बात नहीं करते वे वृद्ध नहीं हैं - न तेनवृध्दो भवति येनाऽस्य पलितं शिरः ।
बाल श्वेत होने से हि मानव वृद्ध नहीं कहलाता ।
- Business par Sanskrit Suktiyan With Meaning
- सत्यानृतं तु वाणिज्यम् ।
सच और जूठ एसे दो प्रकार के वाणिज्य हैं । - वाणिज्ये वसते लक्ष्मीः ।
वाणिज्य में लक्ष्मी निवास करती है । - Vaani Par Sanskrit Suktiyan With Meaning
- अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ।
अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है । - वाक्शल्यस्तु न निर्हर्तु शक्यो ह्रदिशयो हि सः ।
दुर्वचन रुपी बाण को बाहर नहीं निकाल सकते क्यों कि वह ह्रदय में घुस गया होता है । - वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते ।
संस्कृत अर्थात् संस्कारयुक्त वाणी हि मानव को सुशोभित करती है । - वाक्संयमी हि सुदुसःकरतमो मतः ।
वाणी पर संयम रखना अत्यंत कठिन है ।
- Vastra – Sanskrit Suktiyan With Meaning
- कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते ।
खराब वस्त्र भी स्वच्छ हो तो अच्छा दिखता है । - जिता सभा वस्त्रवता ।
अच्छे वस्त्र पहननेवाले सभा जित लेते हैं (उन्हें सभा में मानपूर्वक बिठाया जाता है) । - वस्त्रेण किं स्यादिति नैव वाच्यम् ।
वस्त्रं सभायामुपकारहेतुः ॥
अच्छे या बुरे वस्त्र से क्या फ़र्क पडता है एसा न बोलो, क्योंकि सभा में तो वस्त्र बहुत उपयोगी बनता है ! - Lalach Par Sanskrit Suktiyan With Meaning
- क्लिश्यन्ते लोभमोहिताः ।
लोभ की वजह से मोहित हुए हैं वे दुःखी होते हैं । - लोभः प्रज्ञानमाहन्ति ।
लोभ विवेक का नाश करता है । - लोभमूलानि पापानि ।
सभी पाप का मूल लोभ है । - लोभात् प्रमादात् विश्रम्भात् त्रिभिर्नाशो भवेन्नृणाम् ।
लोभ, प्रमाद और विश्र्वास – इन तीन कारणों से मनुष्य का नाश होता है । - लोभ
लोभं हित्वा सुखी भलेत् ।
लोभका त्याग करने से मानवी सुखी होता है । - अन्तो नास्ति पिपासायाः ।
तृष्णा का अन्त नहीं है ।
- Rup Par Sanskrit Suktiyan With Meaning – slokas on Rup
- रूपेण किं गुणपराक्रमवर्जितेन ।
जिस रूप में गुण या पराक्रम न हो उस रूप का क्या उपयोग ? - मृजया रक्ष्यते रूपम् ।
स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है - कुरूपता शीलयुता विराजते ।
कुरुप व्यक्ति भी शीलवान हो तो शोभारुप बनती है - तद् रूपं यत्र गुणाः ।
जिस रुप में गुण है वही उत्तम रुप है । - Ruchi Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- भिन्नरूचि र्हि लोकः ।
मानव अलग अलग रूचि के होते हैं । - Rikt Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय ।
चीज खाली होने से हल्की बन जाती है; गौरव तो पूर्णता से हि मलता है । - Raja / Leader Par Sanskrit Suktiyan With Meaning
- लोकरझ्जनमेवात्र राज्ञां धर्मः सनातनः ।
प्रजा को सुखी रखना यही राजा का सनातन धर्म है । - राजा कालस्य कारणम् ।
राजा काल का कारण है ।
- Yogyta Par Sanskrit Suktiyan With Meaning
- श्रध्दा ज्ञानं ददाति ।
नम्रता मानं ददाति ।
(किन्तु) योग्यता स्थानं ददाति ।
श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है । - Yachak Pe Sanskrit Suktiyan With Meaning – Rin Par Sukti
- तृणाल्लघुतरं तूलं तूलादपि च याचकः ।
तिन्के से रुई हलका है, और याचक रुई से भी हलका है । - लुब्धानां याचको रिपुः ।
लोभी मानव को याचक शत्रु जैसा लगता है । - याचको याचकं दृष्टा श्र्वानवद् घुर्घुरायते ।
याचक को देखकर याचक, कुत्ते की तरह घुर्राता है । - Yash Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- यशोवधः प्राणवधात् गरीयान् ।
यशोवध प्राणवध से भी बडा है । - यशोधनानां हि यशो गरीयः ।
यशरूपी धनवाले को यश हि सबसे महान वस्तु है ।
- Moun Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi – Slokas on Silence
- वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतम् ।
असत्य वचन बोलने से मौन धारण करना अच्छा है । - मौनिनः कलहो नास्ति ।
मौनी मानव का किसी से भी कलह नहीं होता । - मौनं सर्वार्थसाधनम् ।
मौन यह सर्व कार्य का साधक है । - विभूषणं मौनमपण्डितानाम् ।
मूर्ख लोगों का मौन आभूषण है । - मौनं सम्मतिलक्षणम् ।
मौन सम्मति का लक्षण है ।
- Shastra Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ।
शास्त्र सबकी आँख है । - Swabhaw Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- अतीत्य हि गुणान् सर्वान् स्वभावो मूर्ध्नि वर्तते ।
सब गुण के उस पार जानेवाला “स्वभाव” हि श्रेष्ठ है (अर्थात् गुण सहज हो जाना चाहिए) । - न खलु वयः तेजसो हेतुः ।
वय तेजस्विता का कारण नहीं है । - महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ।
बडे लोग स्वभाव से हि मितभाषी होते हैं । -
Subhashit Par Sanskrit Suktiyan With Meaning – Slokas
- नूनं सुभाषितरसोऽन्यरसातिशायी ।
सचमुच ! सुभाषित रस बाकी सब रस से बढकर है । - युक्तियुक्तमुपादेयं वचनं बालकादपि ।
युक्तियुक्त वचन बालक के पास से भी ग्रहण करना चाहिए । - पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं; जल, अन्न और सुभाषित ।
- Saksharta Par Sanskrit Suktiyan With Meaning
- साक्षरा विपरीताश्र्चेत् राक्षसा एव केवलम् ।
साक्षर अगर विपरीत बने तो राक्षस बनता है ।
- Sheel Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi – slokas on politeness
- कुरूपता शीलतया विराजते ।
कुरूप व्यक्ति भी शीलवान हो तो सुंदर लगती है । - कुलं शीलेन रक्ष्यते ।
शील से कुल की रक्षा होती है - शीलं भूषयते कुलम् ।
शील कुल को विभूषित करता है - Vakta Par Sukti
- किं करिष्यन्ति वक्तारो श्रोता यत्र न बुध्द्यते ।
जहाँ श्रोता समजदार नहीं है वहाँ वक्ता (भाषण देकर) भी क्या करेगा ? - अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।
अप्रिय हितकर वचन बोलनेवाला और सुननेवाला दुर्लभ है - Mitra Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi – Slokas on Friend – Friendship
- मृजया रक्ष्यते रूपम् ।
शृंगार से रुप की रक्षा होती है । - सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले ।
समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं । - आपदि मित्र परीक्षा ।
आपत्ति में मित्र की परीक्षा होती है ।
- Man Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi
- मनसि व्याकुले चक्षुः पश्यन्नपि न पश्यति ।
मन व्याकुल हो तब आँख देखने के बावजूद देख नहीं सकती । - मनः शीघ्रतरं बातात् ।
मन वायु से भी अधिक गतिशील है - .मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।
मन हि मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है ।
- Bhojan Par Sanskrit Suktiyan With Meaning in Hindi – Slokas on Food
- भोजनस्यादरो रसः ।
भोजन का रस “आदर” है । - विना गोरसं को रसो भोजनानाम् ।
बिना गोरस भोजन का स्वाद कहाँ ? - कुभोज्येन दिनं नष्टम् ।
बुरे भोजन से पूरा दिन बिगडता है । - अजीर्णे भोजनं विषम् ।
अपाचन हुआ हो तब भोजन विष समान है । - वपुराख्याति भोजनम् ।
मानव कैसा भोजन लेता है उसका ध्यान उसके शरीर पर से आता है । - कदन्नता चोष्णतया विराजते ।
खराब (बुरा) अन्न भी गर्म हो तब अच्छा लगता है । - Noukar Par Sanskrit Suktiyan With Meaning – Slokas on Servents
- स्वस्वामिना बलवता भृत्यो भवति गर्वितः ।
जिस भृत्य का स्वामी बलवान है वह भृत्य गर्विष्ट बनता है । - शुचिर्दक्षोऽनुरक्तश्र्च भृत्यः खलु सुदुर्लभः ।
इमानदार, दक्ष और अनुरागी भृत्य (सेवक) दुर्लभ होते हैं ।
- Bharya Patni Wife Par Suktiyan – Slokas
- भार्या मित्रं गृहेषु च ।
गृहस्थ के लिए उसकी पत्नी उसका मित्र है । - भार्या दैवकृतः सखा ।
भार्या दैव से किया हुआ साथी है । - नास्ति भार्यासमं किज्चिन्नरस्यार्तस्य भेषजम् ।
आर्त (दुःखी) मानव के लिए भार्या समान कोई ओसड नहीं है । - नास्ति भार्यासमो बन्धु नास्ति भार्यासमा गतिः ।
भार्या समान कोई बन्धु नहीं है, भार्या समान कोई गति नहीं है । - Bhagya Par Suktiyan – Slokas on Luck
- चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्तिः ।
चक्र के आरे की तरह भाग्यकी पंक्ति उपर-नीचे हो सकती है - यद् धात्रा लिखितं ललाटफ़लके तन्मार्जितुं कः क्षमः ।
विधाता ने जो ललाट पर लिखा है उसे कौन मिथ्या कर सकता है ? - भाग्यं फ़लति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ।
भाग्य हि फ़ल देता है, विद्या या पौरुष नहीं । - चराति चरतो भगः ।
चलेनेवाले का भाग्य चलता है ।
- Future ( भविष्य ) Par Suktiyan
- सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ।
जैसी भवितव्यता हो एसे हि सहायक मिल जाते हैं - यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ।
जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता - Bhay ( Fear – डर ) Par Suktiyan
- भये सर्वे हि बिभ्यति ।
भय का कारण उपस्थिति हो तब सब भयभीत होते हैं । - द्वितीयाद्वै भयं भवति ।
दूसरा हो वहाँ भय उत्पन्न होता है । - न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम् ।
बन्धुओं के बीच धनहीन जीवन अच्छा नहीं ।
- Strength ( ताकत ) Par Sukti
- अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता ।
बलवान के साथ विरोध करनेका परिणाम दुःखदायी होता है । - बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् ।
बलवान को कोई नियम नहीं होते, नियम तो दुर्बल को होते हैं । - प्रयोजनमनुद्रिश्य न मन्दोऽपि प्रवर्तते ।
मूढ मानव भी बिना प्रयोजन कोई काम नहीं करता । - स्वभावो दुरतिक्रमः ।
स्वभाव बदलना मुश्किल है ।