दोहों का संग्रह – Collection of Dohe in Hindi With Meaning Pad Sakhi
कबीर दास के दोहे – Kabir Das Ke Dohe in Hindi
- Kabir das ji ke dohe in Hindi on Saint – 1
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहि
धन का भूखा जो फिरऐ सो तो साधू नाहि।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, साधु भाव का भूखा होता है, धन का भूखा नहीं होता. जो धन की चिंता में धूमता है वह साधु नहीं है।
- Kabir ke dohe sakhi with meaning in Hindi – 2
साधु सेवा जा घर नहीं सतगूरु पुजा नाहि
सो घर मरघट जानीऐ भूत बसाइ तेही माहि।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, जिस घर में लोग सांत की सेवा और सतगुरु की पूजा नहीं करते. उस घर को श्मसान समझना चाहिये और वहॉं भुत प्रेत वास कहता हैं।
- Hindi Dohe of Sant Kabir Das on Death – 3
कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहाये
जीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आये।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, कबीर टुकुर टुकुर धूर कर देख रहे है। यह जीवन क्षण क्षण बीतता जा रहा है। प्राणी माया के जंजाल में पड़ा हुआ है और काल ने कूच करने के लिये नगारा पीट दिया है.
- Hindi Dohe of Sant Kabir Das on illusion – 4
कबीर माया पापिनी, फंद ले बैठी हाट
सब जग तो फंदे परा, गया कबीरा काट।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, समस्त माया मोह पापिनी है। वे अनेक फंदा जाल लेकर बाजार में बैठी है। समस्त संसार इस फांस में पड़ा है पर कबीर इसे काट चुके है।
- Kabir das ke dohe in Hindi with meaning – 5
कबीर माया बेसबा, दोनु की ऐक जात
आबत को आदर करै, जात ना पुछै बात।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, माया और वेश्याकी एक जाति है। आने वालो का वह आदर करती है पर जाने वालों से बात तक नहीं पूछती है।
- Kabir das ji ke dohe in Hindi on Women – 6
कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत
केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, नारी से प्रेम के कारण अनेक लोग बरबाद हो गये और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जायेंगे।
- Sant Kabir Das Ji Ke Dohe With Meaning in Hindi – 7
छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल
बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।
भावार्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, स्त्री छोटी बड़ी सब जहर की लता है। दुश्मन दाव चाल से मारता है पर स्त्री हंसी खेल से मार देती है.
- Hindi Mein Kabir Ke Dohe – 8
पर नारी पैनी छुरी, मति कौई करो प्रसंग
रावन के दश शीश गये, पर नारी के संग।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, दुसरो की स्त्री तेज धार वाली चाकू की तरह है। उसके साथ किसी प्रकार का संबंध नहीं रखो। दुसरे के स्त्री के साथ के कारण ही रावण का दश सिर चला गया।
- Kabir ke Niti ke dohe in Hindi – 9
आंखो देखा घी भला, ना मुख मेला तेल
साधु सोन झगरा भला, ना साकुत सोन मेल।
अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, धी देखने मात्र से ही अच्छा लगता है पर तेल मुॅुह में डालने पर भी अच्छा नहीं लगता है। संतो से झगड़ा भी अच्छा है पर दुष्टों से मेल-मिलाप मित्रता भी अच्छा नहीं है।
- Kabir Ke Pad in Hindi – 10
बोले बोल बिचारि के, बैठे ठौर सम्हारि
कहे कबीर ता दास को, कबहु ना आबै हारि।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, खूब सोच समझ विचार कर बोलो और सही ढं़ग से उचित स्थान पर ही बैठो। ऐसा व्यक्ति हार कर नहीं लौटता है।
- Kabir Ke Dohas in hindi – 11 आगि आंच सहना सुगम, सुगम खडग की धार
नेह निबाहन ऐक रस महा कठिन ब्यवहार।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, आग की लपट सहना और तलवार की धार की मार सहना सरल है किंतु प्रेम रस का निर्वाह अत्यंत कठिन व्यवहार है.
- Hindi Sakhi Kabir Ke – 12 जो छोरै तो आंधरा, खाये तो मरि जाये
ऐसे खान्ध छुछुन्दरी, दोउ भांति पछताये।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, यदि साॅंप छछुंदर को पकड़ कर छोड़ देता है तो अंधा हो जाता है और खा लेने पर मर जाता है। वह दोनों ही भॅंाति पछताता है। इसी प्रकार बुरे लोगों के साथ से पतन होता है और उन्हें छोड़ देने पर वे दुश्मन वन जाते हैं। कुसंगति से हर प्रकार से बुरा ही होता है।
- Market Par Sant Kabir Das Ji Ke Dohe With Meaning in Hindi – 13
कबीर खड़ा बजार मे, मांगे सबकी खैर
ना काहु से दोस्ती, ना काहु से बैर।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, कबीर संसार के बाजार में खड़े होकर सबके कल्याण की कामना करते हैं। उन्हंे तो किसी से नहीं मित्रता है और नहीं किसी से शत्रुता। वे सबके लिये समता का भाव रखतें है।
- Hindi Sakhi by Kabir Das ji – 14
मन के मते ना चलिये, मन के मते अनेक
जो मन पर अस्वार है, सो साधू कोइ एक।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, मन के कहने पर मत चलें। मन के अनेक विचार रहते है। जो मन सर्वदा एक स्थिर रहता है-वह दुर्लभ मन कोई एक होता है।
- Kabir ke dohe lyrics in Hindi on Greed – 15
बीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहि
तीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, लोगों की उल्टी खोपड़ी धन से कभी संतुष्ट नहीं होती तथा हमेशा सोचती है कि तीनों लोकों की संमति कब उनके घर आ जायेगी।
- Kabir ke dohe in hindi with meaning also in Hindi – 16
जब गुण को गाहक मिलय, तब गुण लाख बिकाय जब गुण को गाहक नहीं, कौरी बदले जाय।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, गुणी का ग्राहक मिलने पर वह लाखों में विकता है। पर गुणी का ग्राहक खरीदार नहीं मिलने पर वह कौड़ी के भाव लिया जाता है।
- Kabir ke dohe with meaning in Hindi wikipedia – 17
नेह निबाहन कठिन है, सबसे निबहत नाहि
चढ़बो मोमे तुरंग पर, चलबो पाबक माहि।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, प्रेम का निर्वाह अत्यंत कठिन है। सबों से इसको निभाना नहीं हो पाता है। जैसे मोम के घोंड़े पर चढ़कर आग के बीच चलना असंभव होता है।
- Kabir Ke Dohe in Hindi – 18 त पुरानी ना होत है, जो उत्तम से लाग
सौ बरसा जल मैं रहे, पात्थर ना छोरे आग।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, प्रेम कभी भी पुरानी नहीं होती यदि अच्छी तरह प्रेम की गई हो जैसे सौ वर्षो तक भी वर्षा मंे रहने पर भी पथ्थर से आग अलग नहीं होता।
- People Par Sant Kabir Das Ji Ke Dohe With Meaning in Hindi – 19
जिनमे जितनी बुद्धि है, तितनो देत बताय
वाको बुरा ना मानिये, और कहां से लाय।
Meaning: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि, जिसे जितना ज्ञान एंव बुद्धि है उतना वह बता देते हैं। तुम्हें उनका बुरा नहीं मानना चाहिये। उससे अधिक वे कहाॅं से लावें।
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रसखान के दोहे – Raskhan Ke Dohe in Hindi With Meaning
- Raskhan ke dohe with meaning in hindi – 1
अरी अनोखी बाम तूं आई गौने नई
बाहर धरसि न पाम है छलिया तुव ताक में।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि, अरी अनुपम सुन्दरी तुम नयी नवेली गौना द्विरागमन कराकर ब्रज में आई हो-
तुम्हें मोहन का चाल ढाल मालूम नही है।यदि तुम घर के बाहर पैर रखी तो समझ लो-वह छलिया तुम्हारी ताक में लगा हुआ है- पता नहीं कब वह तुम्हें अपने प्रेम जाल में फांस लेगा।
- Kavi raskhan ke dohe in Hindi – 2
कारज कारन रुप यह प्रेम अहै रसखान
कत्र्ता कर्म क्रिया करन आपहिं प्रेम बखान।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि,प्रेम हीं वह कर्म है जिसके द्वारा ईश्वर को बश में किया जा सकता है। प्रेम के द्वारा हीं उसे प्राप्त किया जा सकता है।प्रेम द्वारा परमात्मा को विवश कर दिया जाता है। तब भक्त एवं भगवान एकाकार हो जाते हैं एवं उनके बीच कोई अन्तर नहीं रह जाता है।यह प्रेम की चरम सीमा है।
- Raskhan ke dohe arth sahit in Hindi – 3
अकथ कहानी प्रेम की जानत लैली खूब
दो तनहुं जहं एक भे मन मिलाई महबूब।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि, प्रेम की कहानी कहना संभव नही।इसे प्रेमी प्रेमिका हीं जानते समझते हैं। जब प्रभु प्रेमी प्रेमिका का मन मिला देते हैं तो दो शरीर एक हो जाता है। उनमें किसी प्रकार की द्विविधा एवं द्वैत भाव नही रह जाता है।
- Raskhan Ke Dohe in Hindi With Meaning on Love – 4
- जेहि बिनु जाने कछुहि नहि जान्यो जात विशेष
सोइ प्रेम जेहि जानि कै रहि न जात कछु शेस।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि, जिसने प्रेम नही जाना-उसने संसार में कुछ भी नही जाना।जिसने प्रेम के स्वरुप को जान लिया उसके लिये संसार में अन्य कुछ जानने के लिये सेश नही बच जाता है। प्रेम के बिना संसार में जीवन ब्यर्थ है।प्रेम हीं जीवन का मूल सार्थक तत्व है।
- Raskhan ke dohe on krishna in Hindi with meaning – 5
काल्हि परयौ मुरली धुनि मैं रसखानि जू कानन नाम हमारो
ता दिन तें नहि धीर रहयौ जग जानि लयौ अति किनो पॅवारो।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि, कल्ह जब कान्हा की मुरली की धुन रसखान के कानों में सुनाई पडी तो मानो उसी दिन से मेरा सारा धैर्य समाप्त हो गया है और सारी दुनिया के लोग मुझे दीवाना पागल समझने लगे हैं।
- Raskhan ke dohe in Hindi lyrics – 6
याही तें सब मुक्ति तें लही बढाई प्रेम
प्रेम भय नसि जाहिं सब बंधे जगत के नेम।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि, जहां सब कुछ मुक्त एवं स्वतंत्र है तथा कुछ भी प्राप्त करना दुर्लभ नहीं है-उसी प्रेम को बढाना चाहिये।प्रेम प्राप्त होने पर समस्त सांसारिक दुख सुख नाश हो जाते हैं और व्यक्ति आनन्द के उत्कर्ष को प्राप्त करता है.
- Kavi Raskhan Ke Dohe in Hindi – 7 आनन्द अनुभव होत नहि बिना प्रेम जग जान
के वह विसयानन्द के ब्रम्हानन्द बखान ।
Meaning: इस दोहे में रसखान कहते हैं कि, इस दुनिया में प्रेम के बिना कोई आनन्द नही है। प्रेम बिना संसार ब्यर्थ एवं सूना अनर्गल सारहीन प्रतीत होता है। संसार के भौतिक एवं विसयों का आनन्द परमेश्वर के आनन्द के समक्ष बिल्कुल रसहीन है।
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रहीम दास के दोहे – Rahim ke Dohe
- Rahim ji ke dohe in Hindi – 1
रहिमन निज मन की ब्यथा मन ही रारवो गोय
सुनि इठि लहै लोग सब बंटि न लहै कोय ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, अपने मन के दुख को अपने तन में हीं रखना चाहिये। दूसरे लोग आपके दुख को सुनकर हॅसी मजाक करेंगें लेकिन कोई भी उस दुख को बाॅटेंगें नही। अपने दुख का मुकाबला स्वयं करना चाहिये ।
- Rahim ke dohe in Hindi language – 2
स्वासह तुरिय जो उच्चरै तिय है निश्चल चित्त
पूत परा घर जानिये रहिमन तीन पवित्त ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, यदि घर का मालिक अपने पारिवारिक कत्र्तब्यों को साधना की तरह पूरा करता है और पत्नी भी स्थिर चित्त और बुद्धिवाली हो तथा पुत्र भी परिवार के प्रति समर्पित योग्यता वाला हो तो वह घर पवित्र तीनों देवों का वास बाला होता है।
- Rahim das ji ke Dohe in Hindi Language – 3
हित रहीम इतनै करैं जाकी जिती बिसात
नहि यह रहै न वह रहै रहे कहन को बात ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, हमें दूसरों की भलाई अपने सामथ्र्य के अनुसार हीं करनी चाहिये। छोटी छोटी भलाई करने बाले भी नहीं रहते और बड़े उपकार करने बाले भी मर जाते हैं-केवल उनकी यादें और बातें रह जाती हैं।
- Rahim ji ke dohe in Hindi – 4
रहिमन वे नर मर चुके जे कहॅु माॅगन जाॅहि
उनते पहिले वे मुए जिन मुख निकसत नाहि ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, जो किसी से कुछ मांगने याचना करने जाता है -वह मृतप्राय हो जाता है-कयोंकि उसकी प्रतिष्ठा नही रह जाती।
लेकिन जो मांगने पर भी किसी को देने से इन्कार करता है-वह समझो याचक से पहले मर जाता हैं।
- Niti ke dohe in Hindi of rahim – 5
अनुचित बचन न मानिये जदपि गुराइसु गाढि
है रहीम रघुनाथ ते सुजस भरत की बाढि ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, बहुत जोर जबर्दस्ती या दबाब के बाबजूद अनुचित बात मानकर कोई काम न करें। यदि आपका हृदय नही कहे या कोई बड़ा आदमी भी गलत कहे तो उसे कभी न माॅनें ।
- Rahim das ji ke Dohe in Hindi Font – 6
रहिमन चाक कुम्हार को मांगे दिया न देई
छेद में डंडा डारि कै चहै नांद लै लेई ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, कुम्हार के चाक से दीया मांगने पर वह नही देता है। जब कुम्हार उसके छेद में डंडा डालकर चलाता है तो वह दीया के बदले नाद भी दे देता है। दुर्जन ब्यक्ति नम्रता को कमजोरी मानता है। तब उस पर दंड की नीति अपनानी पड़ती है।
- On Bad Time Rahim das ji ke Dohe In Hindi With Meaning – 7
रहिमन असमय के परे हित अनहित ह्वै जाय
बधिक बधै भृग बान सों रूधिरै देत बताय ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, बुरे दिन में हित की बात भी अहित कर देती है। शिकारी के तीर से घायल हरिण जान बचाने के लिये जंगल में छिप जाता है पर उसके खून की बूंदें उसका स्थान बता देता है। उसका खून हीं उसका जानलेवा हो जाता है।समय पर मित्र शत्रु और अपना पराया हो जाता है।
- Rahim ke Dohe in Hindi – 8
रहिमन अति न कीजिये गहि रहिए निज कानि
सैजन अति फूलै तउ डार पात की हानि ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, किसी बात का अति खराब है।अपनी सीमा के अन्दर इज्जत बचा कर रहें। सहिजन के पेड़ में यदि अत्यधिक फूल लगता है तो उसकी डाल और पत्ते सब टूट जाते हैं। अपनी शक्ति का अतिक्रमण नही करें ।
- Rahim das ji ke Dohe in Hindi – 9
देनहार कोई और है भेजत सो दिन रात
लोग भरम हम पै धरै याते नीचे नैन ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, देने वाला तो कोई और प्रभु है जो दिन रात हमें देने के लिये भेजता रहता है लेकिन लोगों को भ्रम है कि रहीम देता है। इसलिये रहीम आॅखें नीचे कर लोगों को देता है । इश्वर के दान पर रहीम अपना अधिकार नहीं मानते ।
- Hindi Mein Rahim das ji ke Dohe – 10
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौ सील समूच
सील ढील जब देखिये तुरत कीजिए कूच ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, किसी के यहाॅ तभी तक रहें जब तक आपकी इज्जत होती है। मान सम्मान में कमी देखने पर तुरन्त वहाॅ से प्रस्थान कर जाना चाहिये ।
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तुलसीदास के दोहे
- Goswami Tulsidas Ji Ke Dohe in Hindi With Meaning – 1
बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय ।
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय ।।
Meaning – इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है. ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है, तो उसे हर कोई छूने लगता है. - Tulsidas Ji Ke Dohe in Hindi – 2
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक ।।
Meaning – इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, विपत्ति में अर्थात मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है. ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और राम ( भगवान ) का नाम. - Tulsidas ke dohe in Hindi wikipedia – 3
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।।
Meaning – इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, जिस स्थान या जिस घर 9 में आपके जाने से लोग खुश नहीं होते हों और उन लोगों की आँखों में आपके लिए न तो प्रेम और न हीं स्नेह हो. वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की हीं वर्षा क्यों न होती हो. - Hindi Mein Tulsidas Ji Ke Dohe – 4
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरू समाना।
Meaning- इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, जो मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है उसे देखने से भी भारी पाप लगता है. अपने पहाड़ समान दुख को धूल के बराबर और मित्र के साधारण धूल समान दुख को सुमेरू पर्वत के समान समझना चाहिए. - Tulsidas Ji Ke Pad in Hindi – 5
को न कुसंगति पाइ नसाई।
रहइ न नीच मतें चतुराई।
Meaning: इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, खराब संगति से सभी नष्ट हो जाते हैं नीच लोगों के विचार के अनुसार चलने से चतुराई बुद्धि भ्रश्ट हो जाती हैं . - On Slavery Goswami Tulsidas Ji Ke Dohe Pad In Hindi With Meaning – 6
अरि बस दैउ जियावत जाही।
मरनु नीक तेहि जीवन चाहीै
Meaning: इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, ईश्वर जिसे शत्रु के अधीन रखकर जिन्दा रखें उसके लिये जीने की अपेक्षा मरना अच्छा है।
- Tulsidas ke dohe in Hindi ramcharitmanas – 7
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता।
अर्थ: इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, कोई भी किसी को दुख सुख नही दे सकता है. सबों को अपने हीं कर्मों का फल भेागना पड़ता है।
- Tulsidas ke dohe in hindi with bhav – 8
भानु पीठि सेअइ उर आगी।
स्वामिहि मिहि सर्व भाव छल त्यागी।
In Hindi Meaning: इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, सूर्य का सेवन पीठ की ओर से और आग का सेवन सामने छाती की ओर से करना चाहिये।
किंतु स्वामी की सेवा छल कपट छोड़कर समस्त भाव मन वचन कर्म से करनी चाहिये। - Hindi mein Tulsidas Ji Ke Dohe – 9
सो कलिकाल कठिन उरगारी।
पाप परायन सब नरनारी।
अर्थ: इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, कलियुग का समय बहुतकठिन है। इसमें सब स्त्री पुरूस पाप में लिप्त रहते हैं। - Tulsidas ke dohe in Hindi ramcharitmanas – 10
करम प्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करई सो तस फलु चाखा।
Meaning: इस दोहे में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि, ईश्वर ने विश्व मंे कर्म की महत्ता दी है। जो जैसा कर्म करता है-वह वैसा हीं फल भोगता है।
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मीरा के दोहे – Meera Bai ke Dohe in Hindi With Meaning
- Meera ke Dohe Pad in Hindi – 1
पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दई म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस गायो॥
अर्थ::::——- इस दोहे-पद में मीराबाई कहती हैं कि, उन्होंने कृष्ण के नाम का रत्न धन पा लिया है। उनके सतगुरु ने उन्हें अपना कर उनपर कृपा की तथा इस नाम रूपी अमूल्य धन को सौंपा। मीरा ने इस संसार में सब कुछ खो कर इस जन्म जन्म की पूंजी को पाया। ये नाम रूपी धन ऐसा है जो न खर्च करने से कम होता है और न इसे कोई चोर लूट पाता है, इसमे तो दिनों दिन सवा गुणा बढ़त होती रहती है। मीरा ने सत्य की नाव जिसके खेवनहार सतगुरु हैं पर बैठ कर भवसागर पार कर लिया है। मीरा कहती हैं कि मेरे प्रभु गिरिधर श्रीकृष्ण हैं, ओर में उन्ही का यश गाती हूँ। - Summary of meera ke pad in Hindi – 2
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
विष का प्याला राणा भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे।।
Meaning: इस दोहे-पद में मीराबाई कहती हैं कि, उन्होंने पैरों में घुंघरू बांध लिये हैं और वो कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो कर नाच रही हैं। वो स्वयं ही अपने नारायण श्रीकृष्ण की दासी हो गयी हैं, उन्होंने स्वयं को उन्हें समर्पित कर दिया है। लोग कहते हैं कि मीरा बावली हो गई है। उनके अपने नाते रिश्तेदार उन्हें कुलनशिनी तथा कुल कलंकिनी कहते हैं और उनसे नफरत करते हैं। मीरा को प्रताड़ित करने के लिए स्वयं उनके श्वसुर राणा सांगा ने विष का प्याला भेजा था, जिसे मीरा ने हंसते हंसते पी लिया। मीरा कहती हैं उनके प्रभु गिरिधर श्रीकृष्ण अविनाशी हैं अर्थात कोई उनका विनाश नहीं कर सकता और सहज प्राप्य हैं।
- Pain Of Love Meera Bai ke Dohe in Hindi With Meaning – 3
हे री मैं तो दरद-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
घायल की गति घायल जाणै, हिबड़ो अगण संजोय।
जौहर की गति जौहरी जाणै, क्या जाणे जिण खोय।
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय।
गगन मंडल पर सेज पिया की किस बिध मिलणा होय।
दरद की मारी बन-बन डोलूँ बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जद बैद सांवरिया होय।
अर्थ::::—– इस दोहे-पद में मीराबाई कहती हैं कि, में तो इसी प्रेम की पीड़ा की दीवानी हूँ, मेरी ये पीड़ा कोई नहीं समझ सकता। जिस प्रकार घायल की दशा का भान सिर्फ एक घायल ही कर सकता है की किस प्रकार उसके हृदय में एक आग जल रही है। हीरे की कीमत सिर्फ एक जौहरी जान सकता है वह क्या जान पाएगा जिसने उस हीरे को खो दिया। वैसे ही ईश भक्ति की कीमत भक्त ही जान सकता है। वे कहती हैं कि मेरे लिए कहीं आराम नहीं, मेरी सेज भी सूली के ऊपर ही है, अर्थात के कष्टों से घिरी हुई है। मेरे पिया की सेज उस लोक में आसमान के पार है,न जाने कैसे, कौन सी विधि से मैं उनसे मिल पाऊँगी।वो तो दर्द में बावली हो कर डर डर भटक रही हैं कि उन्हें कहीं आराम मिल जाए पर उन्हें इस पीड़ा का कोई वैद्य नहीं मिलता। मीरा कहती हैं कि उनकी यह पीड़ा तभी मिलटेगी जब स्वयं उनके प्रियतम श्रीकृष्ण उनके सामने वैद्य बन कर आएंगे।
- Meera ke pad in Hindi language – 4
दरस बिनु दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन॥
सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन।
बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन॥
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभू कब रे मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥
Meaning: इस दोहे-पद में मीराबाई कहती हैं कि, बिना कवि के दर्शन के उनके नैनों में दर्द होने लगा है। जब से प्रभु उनसे बिछड़े हैं, अर्थात जब से वह संसार में आई हैं, उन्हें कभी चैन नहीं मिल पाया है। सबद सुनते सुनते उनकी छाती विरह के दुख में कांपने लगती हैं, यद्यपि उन्हें सबद के बोल बफे मीठे लगते हैं, क्योंकि वे उन्हें प्रभु की याद दिलाते हैं। वो अपनी सखी को सम्बोधित कर के कहती हैं कि मैं अपनी विरह की पीड़ा की कहानी किससे कहूँ, ऐसा लगता है मानो आरी चल रही हो। हरि की राह निहारते निहारते मेरा पल नहीं बीतता, रातें मानो 6 महीने जितनी लम्बी हो जाती हैं।अपने प्रभु को संबोधित कर मीरा पूछती हैं कि हे मेरे प्रभु तुम मेरे दुख मिटाने तथा सुख प्रदान करने को कब मिलोगे।
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बिहारीलाल के दोहे – Biharilal ke Dohe
- Biharilal ke Dohe in Hindi – 1
दृग उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर-चित्त प्रीति।
परिति गांठि दुरजन-हियै, दई नई यह रीति।।
अर्थ: इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, प्रेम की रीति अनूठी है। इसमें उलझते तो नयन हैं,पर परिवार टूट जाते हैं, प्रेम की यह रीति नई है इससे चतुर प्रेमियों के चित्त तो जुड़ जाते हैं पर दुष्टों के हृदय में गांठ पड़ जाती है।
- Hindi Mein Biharilal ke Dohe – 2
अंग-अंग नग जगमगत,दीपसिखा सी देह।
दिया बढ़ाए हू रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह।।
Meaning: इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, नायिका का प्रत्येक अंग रत्न की भाँति जगमगा रहा है,उसका तन दीपक की शिखा की भाँति झिलमिलाता है अतः दिया बुझा देने पर भी घर मे उजाला बना रहता है।
- Bihari ke dohe explanation in Hindi – 3
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करै, भौंहन हँसै, देन कहै नटि जाय ॥
अर्थात – इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, गोपियों ने कृष्ण की मुरली छिपा दी है. और कृष्ण के मुरली माँगने पर वे उनसे स्नेह करती हैं, भौंहें से आपस में इशारे करके हँसती हैं. कृष्ण के बहुत बोलने पर वो मुरली लौटने को तैयार हो जाती हैं, लेकिन फिर मुरली को वापस छिपा लेती हैं. - Biharilal ke Dohe In Hindi With Meaning on Lovers – 4
कहति नटति रीझति खिझति, मिलति खिलति लजि जात ।
भरे भौन में होत है, नैनन ही सों बात ॥
Meaning – इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, नायिका नायक से बातें करती है, नाटक करती है, रीझती है, नायक से थोड़ा खीझती है, वह नायक से मिलती है, ख़ुशी से खिल जाती है, और शरमा जाती है. भरी महफिल में नायक और नायिका के बीच में आँखों से हीं बातें होती है. - Biharilal ke Dohe in Hindi -5
मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल ।
यहि बानिक मो मन बसौ सदा बिहारीलाल ।।
अर्थात – इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, हे कृष्ण, तुम्हारे सिर पर मोर मुकुट हो, तुम पीली धोती पहने रहो, तुम्हारे हाथ में मुरली हो और तुम्हारे गले में माला हो. इसी तरह (इसी रूप में) कृष्ण तुम मेरे मन हमेशा बसे रहो. - Bihari satsai ke dohe in Hindi – 6
मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय ।
जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय ।।
Meaning – इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, हे राधा, तुम्हारे शरीर की छाया पड़ने से तो कृष्ण भी खुश हो जाते हैं. इसलिए तुम मेरी भवबाधा (परेशानी) दूर करो.
- Bihari ke Dohe in Hindi – 7
मैं समुझयौ निरधार,यह जगु काँचो कांच सौ।
एकै रूपु अपर, प्रतिबिम्बित लखियतु जहाँ।।
अर्थ: इस दोहे-पद में बिहारीलाल कहते हैं कि, इस सत्य को मैंने जान लिया है कि यह संसार निराधार है। यह काँच के समान कच्चा है. कृष्ण का सौन्दर्य अपार है जो सम्पूर्ण संसार मे प्रतिबिम्बित हो रहा है।
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गुरु पर दोहे – Guru Ke Dohe In Hindi
- Guru mahima ke dohe in Hindi – 1
गुरु पारस को अन्तरो,
जानत हैं सब सन्त |
वह लोहा कंचन करे,
ये करि लये महन्त ||
Meaning: गुरु में और पारस – पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं | पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है |
- Guru ke liye dohe in Hindi – 2
सब धरती कागज करूँ,
लिखनी सब बनराय |
सात समुद्र की मसि करूँ,
गुरु गुण लिखा न जाय ||
व्याख्या: सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते |
- Hindi Mein Guru Par Dohe – 3
करै दूरी अज्ञानता,
अंजन ज्ञान सुदये |
बलिहारी वे गुरु की,
हँस उबारि जु लेय ||
Meaning: ज्ञान का अंजन लगाकर शिष्य के अज्ञान दोष को दूर कर देते हैं | उन गुरुजनों की प्रशंसा है, जो जीवो को भव से बचा लेते हैं |
- Guru Ke Liye Dohe in Hindi – 4
जाका गुरु है आँधरा,
चेला खरा निरंध |
अन्धे को अन्धा मिला,
पड़ा काल के फन्द ||
व्याख्या: जिसका गुरु ही अविवेकी है उसका शिष्य स्वय महा अविवेकी होगा | अविवेकी शिष्य को अविवेकी गुरु मिल गया, फलतः दोनों कल्पना के हाथ में पड़ गये.
- Guru mahima ke dohe in Hindi – 5
जनीता बुझा नहीं बुझि,
लिया नहीं गौन |
अंधे को अंधा मिला,
राह बतावे कौन ||
Meaning: विवेकी गुरु से जान – बुझ – समझकर परमार्थ – पथ पर नहीं चला | अंधे को अंधा मिल गया तो मार्ग बताये कौन |
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संत रविदास के दोहे – Sant Ravidas ke Dohe In Hindi
- Sant ravidas ke dohe in Hindi – 1
मन चंगा तो कठौती में गंगा
हिन्दी अर्थ :– इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि, यदि आपका मन और हृदय पवित्र है साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है.
- Hindi Mein Sant Ravidas ke Dohe – 2
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
Meaning – इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि, हमे हमेसा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए क्युकी कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है.
- Guru Sant Ravidas ke Dohe – 3
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम
हिन्दी अर्थ – इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि, जिसके हृदय में रात दिन राम समाये रहते है ऐसा भक्त होना राम के समान है क्युकी फिर उसके ऊपर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम की भावना उसपर हावी होती है.
- Sant ravidas ke dohe in Hindi with meaning – 4
मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप
Meaning: इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि, निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है. ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं.
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गुरु नानक जी के दोहे – Guru Nanak ji ke Dohe in Hindi With Meaning
- Guru nanak ji ke dohe in Hindi with meaning – 1
केता ताणु सुआलिहु रूपु।
केती दाति जाणै कोणु कूतु।
Meaning: इस दोहे में गुरु नानक देव जी कहते हैं कि, ईश्वर ने संसार को कितनी ताकत और सुन्दरता ऐश्वर्य प्रदान की हैं।
प्रभु की देन की बस्तुयें अनगिनत हैं। प्रभु की देन की अनन्ता एवं सर्वब्यापकता की तरह हीं उसका रचना संसार भी अनन्त है।
- Guru nanak dev ke dohe in Hindi – 2
कीता पसाउ एको कवाउ।
तिस ते होए लख दरी आउ।
अर्थ: इस दोहे में गुरु नानक देव जी कहते हैं कि, प्रभु की एक आज्ञा से संसार की रचना एवं विस्तार हो गया। प्रभु अपने रचना का निरंतर विकाश भी कर रहा है। उसी के आदेश से लाखों नदियाॅ प्रवाहित हो रही है। - Guru nanak dev ji ke dohe in Hindi with meaning – 3
असंख जप असंख भाउ।
असंख पूजा असंख तप ताउ।
Meaning: इस दोहे में गुरु नानक देव जी कहते हैं कि, प्रभु के अनेकानेक नाम एवं रूप हैं। ईश्वर के जप एवं विचार भी असंख्य हैं। उसके पूजा के प्रकार भी अनगिनत हैं।
उसकी प्राप्ति हेतु तपस्या के अनेकानेक तरीके हैं। लोग अपने मन और शरीर को नाना प्रकार से तपाकर प्रभु की साधना करते हैं। - Hindi Mein Guru Nanak ji ke Dohe – 4
कागदि कलम न लिखणहारू।
मंने काबहि करनि वीचारू।
अर्थ: इस दोहे में गुरु नानक देव जी कहते हैं कि, ऐसी कोई कागज और कलम नही बनी है अैार कोई ऐसा लिखने बाला भी नहीं है जो प्रभु के नाम की महत्ता का वर्णन कर सके।
- Guru nanak all dohe in Hindi with meaning – 5
ऐसा नाम निरंजनु होइ।
जे को मंनि जाणै मनि कोइ।
In Hindi Meaning: इस दोहे में गुरु नानक देव जी कहते हैं कि, नाम का मनन करने बाला हीं उसका महत्व जानता है-दूसरा कोई नहीं।
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गुरु गोविन्द दोऊ खड़े दोहे
- Guru govind dou khade Dohe In Hindi With Meaning
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
अर्थ: गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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दोस्ती पर दोहे
- 5 Dohe on Friendship in Hindi – 1
जो रहीम दीपक दसा तिय राखत पट ओट
समय परे ते होत हैं वाही पट की चोट ।
अर्थ: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, जिस प्रकार वधु दीपक को आॅचल की ओट से बचाकर शयन कक्ष में रखती है उसे हीं मिलन के समय झपट कर बुझा देती है।बुरे दिनों में अच्छा मित्र भी अच्छा शत्रु बन जाता है ।
- Dohe on friendship in Hindi with meaning – 2
वरू रहीम कानन बसिय असन करिय फल तोय
बंधु मध्य गति दीन ह्वै बसिबो उचित न होय ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, जंगल में बस जाओ और जंगली फल फूल पानी से निर्बाह करो लेकिन उन भाइयों के बीच मत रहो जिनके साथ तुम्हारा सम्पन्न जीवन बीता हो और अब गरीब होकर रहना पड़ रहा हो।
- Dohe on true friendship in Hindi – 3
जलहिं मिलाई रहीम ज्यों कियो आपु सग छीर
अगबहिं आपुहि आप त्यों सकल आॅच की भीर ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, दूध पानी को अपने में पूर्णतः मिला लेता है पर दूध को आग पर चढाने से पानी उपर आ जाता है और अन्त तक सहता रहता है। सच्चे दोस्त की यही पहचान है।
- Dohe on friendship in Hindi language – 4
कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत
विपति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत ।
Meaning: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, संपत्ति रहने पर लोग अपने सगे संबंधी अनेक प्रकार से खोज कर बन जाते हैं। लेकिन विपत्ति संकट के समय जो साथ देता है वही सच्चा मित्र संबंधी है।
- Dohe on Friendship in Hindi – 5
हिमन कीन्ही प्रीति साहब को भावै नही
जिनके अगनित भीत हमैं गरीबन को गनै ं
अर्थ: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि, रहीम ने अपने मालिक से प्रेम किया किंतु वह प्रेम मालिक को भाया नही-अच्छा नही
लगा। स्वाभाविक है कि जिनके अनगिनत मित्र होते हैं-पे गरीब की मित्रता को कयों महत्व देंगें।
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अमीर खुसरो के दोहे
- .Amir Khusro ke Dohe – 1
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।। - Amir Khusro ke Dohe – 2
चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।। - Amir Khusro ke Dohe – 3
उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखन में तो साधु लगे निपट पाप की खान।। - Amir Khusro ke Dohe – 4
श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।. - Amir Khusro ke Dohe – 5
पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।। - Amir Khusro ke Dohe – 6
नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।। - Amir Khusro ke Dohe – 7
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।। - Amir Khusro ke Dohe – 8
रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।। - Amir Khusro ke Dohe – 9
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।। - Amir Khusro ke Dohe – 10
आ साजन मोरे नयनन में, तोहे पलक ढाप दूँ।
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ। - Amir Khusro ke Dohe – 11
अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीव की सो अपनी भूल गई।। - Amir Khusro ke Dohe – 12
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।। - Amir Khusro ke Dohe – 13
संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।। - Amir Khusro ke Dohe – 14
खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।
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संत तुकाराम के दोहे – Sant Tukaram Ke Dohe In Hindi With Meaning
- Sant Tukaram Ke Dohe – 1
बार-बार काहे मरत अभागी । बहुरि मरन से क्या तोरे भागी
ये ही तन करते क्या ना होय । भजन भगति करे वैकुण्ठ जाए
राम नाम मोल नहिं बेचे कवरि। वो हि सब माया छुरावत
कहे तुका मनसु मिल राखो । राम रस जिव्हा नित्य चाखो
अर्थ: इस दोहे में संत तुकाराम जी कहते हैं कि, बार-बार तुम क्यों मरना चाहते हो। क्या इससे छूटकर भागने का कोई उपाय तुम्हारे पास नहीं है। अरे भाई यह शरीर बड़ा अद्भुत्त है। उससे क्या नहीं हो सकेगा। भक्तिपूर्ण ईश्वर भजन से वैकुण्ठ प्राप्ति हमें हो सकती है। राम नाम लेने के लिए कौड़ी भी हमें खर्च नहीं करनी पड़ती है। राम नाम की शक्ति प्रपंच की माया से हमें मुक्ति दिला सकती है। तुकाराम कहते हैं कि महत्त्वपूर्ण बात केवल इतनी ही है कि जब हम पूरे मन से राम नाम में तल्लीन होते हैं तभी जिह्वा से निकलने वाला राम नाम रूपी अमृत रस हमें नित्य तृप्ति दिला देगा। - ( Sant Tukaram Ke Dohe In Hindi With Meaning )
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वृन्द के दोहे
- Vrind ke dohe aur unke arth – 1
अपनी पहुँच बिचारी के करतब कीजे दौर।
तेते पाँव पसारिये जेती लांबी सौर॥
Meaning: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, व्यक्ति को पहले अपनी क्षमता का आंकलन करने के बाद ही अपना लक्ष्य निश्चित करना चाहिए. ताकि आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें. अपनी क्षमता का सही आंकलन किये बिना लक्ष्य पाने की लालसा करना चादर से बहार पैर पसारने जैसा है. - Vrind ke dohe in Hindi with meaning – 2
विद्या धन उद्यम बिना, कहो जो पावे कौन
बिना डुलाये न मिले, ज्यों पंखे की पौन।
अर्थ: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, जीवन में कुछ भी पाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है. मेहनत के बिना कोई विद्या नहीं प्राप्त कर सकता है. ठीक वैसे हीं जैसे पंखे को हिलाये बिना हवा नहीं मिलती है. - Vrind das ke dohe with short meaning – 3
अति हठ मत कर हठ बढ़े, बात न करिहै कोय ।
ज्यौं –ज्यौं भीजै कामरी, त्यौं-त्यौं भारी होय ॥
Meaning: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, ज्यादा जिद नहीं करनी चाहिए. क्योंकि ज्यादा जिद करने से लोग बात करना और रूठने को महत्व नहीं देने लगते हैं. ठीक उसी तरह जैसे की कोई छोटा कम्बल जैसे-जैसे भींगता है वैसे-वैसे भारी होता जाता है. - Vrind ke dohe arth ke sath – 4
जैसे बंधन प्रेम कौ, तैसो बन्ध न और ।
काठहिं भेदै कमल को, छेद न निकलै भौंर ॥
अर्थ: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, जैसा प्यार का बंधन होता है, वैसा बंधन किसी और चीज का नहीं होता है. जैसे कि लकड़ी के काठ को छेद देने वाला भौंरा कमल को नहीं छेदता है. - Vrind ke Dohe – 5
स्वारथ के सबहिं सगे,बिन स्वारथ कोउ नाहिं ।
सेवै पंछी सरस तरु, निरस भए उड़ि जाहिं ॥
In Hindi Meaning: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, इस दुनिया में सभी स्वार्थवश दूसरों से जुड़े होते हैं या उन्हें अपना कहते हैं. ठीक वैसे हीं हरे-भरे वृक्ष में पक्षी रहते हैं, लेकिन उसके सूख जाने पर वे उस पेड़ को छोड़कर उड़ जाते हैं. - Vrind ke Dohe in Hindi – 6
बिन स्वारथ कैसे सहे, कोऊ करुवे बैन।
लात खाय पुचकारिये, होय दुधारू धैन॥
अर्थ: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, बिना स्वार्थ के कोई भी व्यक्ति कड़वे वचन नहीं सहता है. जैसे दुधारू गाय की लात खाने के बाद भी व्यक्ति उसे दुलारता और पुचकारता है क्योंकि दूध उसी से मिलना है. - Hindi Mein Vrind ke Dohe – 7
कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचो नीर।।
Meaning: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, कोई भी काम धैर्य के साथ होता है. धीरज खोना अच्छा नहीं होता होता है. ठीक वैसे हीं जैसे वृक्ष पर समय आने पर हीं फल लगते हैं, चाहे उसे समय से पहले कितने हीं पानी से सींचा जाये. - Vrind ke Dohe in Hindi – 8
क्यों कीजे ऐसो जतन, जाते काज न होय ।
परबत पर खोदै कुआँ, कैसे निकरै तोय ॥
अर्थ: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, ऐसा प्रयास नहीं करना चाहिए जिससे कि काम ना बने. जैसे कि पर्वत पर कुआं खोदने से कोई फायदा नहीं होता. - Vrind ke dohe Hindi mein – 9
जाकौ बुधि-बल होत है, ताहि न रिपु को त्रास ।
घन –बूँदें कह करि सके, सिर पर छतना जास ॥
Meaning: इस दोहे में वृन्द जी कहते हैं कि, जिसके पास बुद्धि रूपी बल होता है, उसे शत्रु का भय नहीं होता है. ठीक उसी तरह जिसके सिर पर छत हो, बादल और वर्षा की बूंदों से उसे कोई भय नहीं होता है. - Hindi Mein Vrind ke Dohe – 10
निरस बात, सोई सरस, जहाँ होय हिय हेत ।
गारी प्यारी लगै, ज्यों-ज्यों समधन देत ।।
अर्थ: वृन्द जी इस दोहे में कहते हैं कि जिस व्यक्ति के प्रति हमारे ह्रदय में लगाव और स्नेह का भाव होता है, उस व्यक्ति की नीरस बात भी सरस लगती है. जैसे समधिन के द्वारा दी जाने वाली गालियाँ भी अच्छी लगती हैं क्योंकि उन गालियों में स्नेह का भाव होता है.
- Vrind ke Dohe in Hindi – 11
जो जाको गुन जानहि सो तिहि आदर देत।
काकिल अंबहि लेत है काग निबोरी लेत।।
Meaning: वृन्द जी इस दोहे में कहते हैं कि जो जिसका गुण जानता है वो उसी को आदर देता है. जिस प्रकार कोयल आम खाती है और कौआ नीम की निबौरी खाता है.
- Hindi Mein Vrind ke Dohe – 12
अति परिचै ते होत है, अरुचि अनादर भाय।
मलयागिरि की भीलनी, चंदन देत जराय॥
Meaning: वृन्द जी इस दोहे में कहते हैं कि किसी के लिए अति सुलभ हो जाने से सामने वाले व्यक्ति की आप में रूचि नहीं रह जाती है. और व्यक्ति का अपमान होता है. जैसे कि मलयगिरी पर्वत की भीलनी उस चन्दन की लकड़ियों से खाना पकाती है, जो चन्दन सभी स्थानों पर महत्व पाता है.
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